गुणधर्म -इस औषधि का फेफड़े पर बहुत अच्छा प्रभाव होता है। संचित विकारों को निकालना और पोफड़े को सबल – बनाना इसका प्रधान कार्य है, ये पुराने सभी प्रकार के श्वास रोग में इससे बहुत लाभ होता है। दमे के जिन रोगियों को रात-दिन परेशानी रहती है उन्हें इसका सेवन अवश्य करना चाहिये. कठिन कास (खाँसी) में इसका प्रयोग होता है। यह आँत, यकृत, मूत्राशय तथा हृदय की क्रिया को ठीक करता है। इसका अधिक प्रयोग श्वांस रोग में ही किया जाता है। बच्चों की कुकर खाँसी एवं शोध रोगी इससे ठीक हो जाते है। यह रसायन हृदय को बल देने वाला. हितकर और शान्ति बढ़ाने वाला है।
मात्रा और अनुपान
1-1 गोली सुबह-शाम श्वास रोग में बहेड़े की मींगी चूर्ण और मधु के साथ, कास रोग में पीपल
चूर्ण और शहद के साथ, खाँसी में अदरख का रस और मधु के साथ, बल वृद्धि के लिए मलाई के साथ सेवन करे।
| पथ्य पेट साफ रखना, वमन, स्वेदन करना, गर्मजल, कफ-वात नाशक पदार्थ, पुराने लाल चावल, गेहूँ जी. कुल्थी पुराना घी, बकरी का दूध, घी, मद्य, मधु, बथुआ, चौलाई, कोमल मूली, परवल, मीठा टमाटर, लहसुन, बिजौरी, नींबू जम्बीरी, मुनक्का आदि श्वास रोगों में चिकित्सक की सलाह के मुताबिक लेना चाहिये। शाम को सम्भव हो तो सूर्यास्त के पूर्व अथवा जल्द भोजन कर लेना उत्तम है।
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